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Showing posts from August, 2020

Seeing God in Digital Technology. (डिजिटल तकनीक में ईश्वर को देखना।)

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Seeing God in Digital Technology. (डिजिटल तकनीक में ईश्वर को देखना।) हिंदू धर्म दृष्टि प्रत्येक जगह देवत्व देखता है और इसलिए, ब्रह्मांड में सब कुछ पवित्र, पूजा के योग्य समझता है। हिंदू पेड़ों, पत्थरों, पहाड़ों, अग्नि, सूर्य, नदियों, जानवरों की प्रार्थना करते हैं। देवत्व का वस्तुकरण अंधविश्वास नहीं है। जिस चीज की पूजा की जाती है, वह वस्तु नहीं है, लेकिन उसमें देवत्व विराजमान है। हम उन उपकरणों और प्रौद्योगिकियों की भी वंदना करते हैं जो हमारे जीवन मूल्य को जोड़ते हैं, समृद्धि पैदा करते हैं और खुशी को बढ़ावा देते हैं। दीपावली के दौरान, 'गणेश लक्ष्मी पूजा' में, व्यवसायी अपने खाते की पुस्तकों की पूजा करते हैं। 'सरस्वती पूजा' में, छात्र अपने स्कूल की किताब कापियों की पूजा करते हैं। भारत भर में कई किसान अपने हल और मवेशियों के लिए प्रार्थना करके अपने कार्य की शुरुआत करते हैं। डिजिटल प्रौद्योगिकियों को ईश्वर माना जा सकता है। यदि मानव ईश्वर की रचना का सर्वोच्च रूप है, तो इंटरनेट मानव मन की सर्वोच्च रचना है। पेन या हल के विपरीत, इसका कोई मतलब नहीं है, न ही यह विशेष रूप से इसके

How to remove fear ? ( भय पर विजय कैसे पाये ? )

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How to remove fear ? ( भय पर विजय कैसे पाये ? ) मनुष्य प्रायः भयभीत रहता है। इस स्थिति में उसके लिए अभय का गुण होना जरूरी है । वास्तव में भय राग से उत्पन्न होता है। राजर्षि भृतहरि ने कहा था ' भोगों से रोग होने का भय होता है, ऊंचे कुल में पतन का भय होता है, मान में दीनता का भय होता है, बल में शत्रु का भय है, शरीर में काल का भय होता है। इस तरह सम्पूर्ण संसार भय ग्रस्त है। भय से विरक्त केवल वैराग्य होता है।'   वास्तव में वैराग्य से विपरीत राग, मोह उत्पन्न होता है। मोह से वस्तु , स्थिति या पद में लगाव उत्पन्न हो जाता है। यही लगाव उस वस्तु के छिन जाने से या फिर उसके नष्ट हो जाने के आशंका से भय ग्रस्त रहता है। इस भय पर विजय प्राप्त करना ही अभय होता है। अभय सत्य के पक्ष में खड़े होने का साहस देता है। अभय के कारण ही प्रह्लाद अपने पिता के सामने अडिग रहा और दैवीय शक्ति को प्राप्त किया। पांच वर्ष का बालक ध्रूव, अभय गन धारण करके अकेले ही वन में जाकर कठोर तप करके परम् पड़ को प्राप्त किया । नचिकेता ने अभय गुण के कारण ही अपने पिता से सत्य और नीति के पक्ष में प्रश्न कर सका। छत्रपति श

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